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ईंट-सीमेंट-रेत और स्टील के बिना बेहद सस्ते में बना सकते हैं मकान, जानिए नई टेक्नोलॉजी के बारे में… (You can build houses very cheaply without brick-cement-sand and steel, know about new technology)

नई दिल्‍ली. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मद्रास (IIT Madras) ने एक खास तकनीक का इस्‍तेमाल कर बहुत कम कीमत पर कम समय में मजबूत और टिकाऊ पक्‍के मकान तैयार किए हैं. आईआईटी मद्रास का दावा है कि उसने 6 लाख रुपये से भी कम लगात (Cost) में 500 स्‍क्‍वायर फुट एरिया में दो कमरे के मकान (2 Room Set) तैयार किए हैं. सबसे खास बात यह है कि इस मकान को बनाने में ईंट (Bricks), सीमेंट (Cement), रेत और स्‍टील (Steel) जैसे मैटेरियल का इस्‍तेमाल नहीं किया गया है.

जिप्‍सम वेस्‍ट में फाइबर ग्‍लास को मिलाकर बनाया मकान 

आईआईटी मद्रास के डायरेक्‍टर भास्‍कर रामामूर्ति ने बताया कि इसे फर्टिलाइजर प्लांट से हर साल निकलने वाले लाखों टन जिप्सम वेस्ट में ग्लास फाइबर को मिलाकर बनाया गया है. उन्‍होंने बताया कि इन्‍हें प्रीकास्‍ट रिइनफोर्स जिप्‍सम पैनल से बनाए जाने के कारण मकान को तैयार होने में बहुत कम समय और कम लागत लगती है. साथ ही ये मकान ईंट, सीमेंट से बनने वाले सामान्‍य मकानों की ही तरह मजबूत और टिकाऊ होते हैं. दरअसल, इस मकान को बनाने में इस्‍तेमाल होने वाले रिइनफोर्स जिप्‍सम पैनल को घर के आकार के मुताबिक पहले ही तैयार कर लिया जाता है.

प्रीकास्‍ट जिप्‍सम पैनल्‍स को साइट पर लगाकर जोड़ दिया जाता है. इसलिए ये ईंट-सीमेंट से बनने वाले मकानों से 30 फीसदी कम समय में तैयार हो जाते हैं. आईआईटी मद्रास ने इस तकनीक का इस्‍तेमाल कर पूरी बिल्डिंग बनाई है, जिसका उद्घाटन कर दिया गया है. प्रोफेसर रामामूर्ति ने कहा कि इन पैनल्‍स को बनाने में मॉडर्न टेक्‍नोलॉजी का इस्‍तेमाल किए जाने के कारण मैटेरियल वेस्‍ट भी नहीं होता है. ये पैनल इस तरह से डिजाइन किए जाते हैं ताकि इन्‍हें जोड़कर आसानी से दीवार, छत कम लागत पर तैयार की जा सकें. वहीं, ये मकान भूकंप-रोधी और पर्यावरण के अनुकूल भी होते हैं. वहीं, प्रोफेसर देवदास मेनन ने बताया कि फर्टिलाइजर प्लांट्स के पास 4 करोड़ टन से ज्‍यादा जिप्सम वेस्‍ट मौजूद है. इसलिए लंबे समय तक जिप्‍सम वेस्‍ट की आपूर्ति की समस्‍या खड़ी नहीं होगी.

जिप्‍सम से बने घर पर्यावरण को नहीं पहुंचाते हैं नुकसान

कंक्रीट से बनी दीवारों में गर्म होने की समस्या ज्‍यादा होती है. वैज्ञानिक शोधों के मुताबिक, 1 किग्रा कंक्रीट 900 ग्राम कार्बन डाईऑक्साइड पर्यावरण में छोड़ती है. वहीं, जिप्सम से पर्यावरण को ऐसा कोई नुकसान नहीं होता है. जिप्‍सम के पैनल रिसाइक्लेबल और हल्‍के भी होते हैं. आईआईटी मद्रास के डायरेक्‍टर भास्‍कर रामामूर्ति ने कहा कि इस तकनीक से मकान बनाकर उन लोगों को जल्‍द से जल्‍द और कम से कम लागत में बड़ा फायदा पहुंचाया जा सकता है, जिनके सिर पर इस समय छत नहीं है. इस तकनीक के जरिये केंद्र सरकार हर परिवार को पक्‍के मकान का अपना वायदा समय पर पूरा कर सकती है. प्रोफेसर मेनन ने बताया कि आईआईटी मद्रास इस पर 10 साल से काम कर रहा है. अब इसका बड़े पैमाने पर इस्‍तेमाल होने में ज्‍यादा समय नहीं लगेगा.