तमिलनाडु में द्रमुक सत्ता से लंबे समय से बाहर है। यह वही पार्टी है जिसके शासन में ईसाई मिशनरियों की गतिविधियां चरम पर रही थीं। चर्च पैसे से मालामाल था। लेकिन अब चर्च कथित तौर पर अन्य तरीकों से पैसे बनाने पर तुला है। आईआईटी मद्रास में ईसाइयों की तेजी से नियुक्ति चौंकाने वाली है
सोशल मीडिया पर इन दिनों एक संदेश घूम रहा है जिसमें कहा गया है कि आईआईटी मद्र्रास जैसे प्रतिष्ठित और लोकप्रिय उच्चशिक्षा संस्थान में रिक्तियों को भरने का एक व्यवस्थित और नियमबद्ध तरीका होना चाहिए। इस फेसबुक पोस्ट में कहा गया है, ‘अगर बहुत सारी चीजें संयोग से होती दिखें, तो यह संयोग भर नहीं होता। नागरकोइल से आर्इं जेन एडवडर््स इन दिनों आईआईटी की रजिस्ट्रार हैं। रॉबिन्सन इंजीनियरिंग इकाई के अध्यक्ष हैं, कोशी वर्गीज डीन (प्रशासन) हैं, लिगी फिलिप डीन (प्लानिंग) हैं, रेबेका यहां के अस्पताल की मुख्य चिकित्साधिकारी हैं और स्कारिया कार्यकारी सीएसओ हैं।’
क्या ये सभी संयोगवश पद पर आए हैं? अब जरा इसके परिणामों पर निगाह डालें-रखरखाव और 600 एकड़ से अधिक के परिसर की सफाई के लिए नागरकोइल की ‘क्रिएशन्स’ नाम की संस्था को अनुबंधित किया गया है। ये काम पहले स्थानीय स्वयं-सहायता समूहों के पास थे। नई संस्था मुख्यत: अपने क्षेत्र के ईसाइयों को ही काम देती है। परिसर में इस तरह के बड़े बदलाव के लिए न कोई निविदा जारी की गई, न ही इस पर कोई चर्चा हुई कि स्थानीय गरीब श्रमिकों को हटाकर 700 किलोमीटर दूर की किसी कंपनी को चेन्नै क्यों लाया गया।
जेन एडवडर््ससभी पदों पर केवल ईसाइयों की भर्ती कर रही हैं, वह भी खासतौर पर अपने गृह क्षेत्र के लोगों की। परिसर में जानवरों की देखभाल करने वाले स्थानीय निवासियों पर भी जबरन रोक लगाते हुए जेन यहां ‘जीव कारुण्य ट्रस्ट’ को लाई हैं, नागरकोइल से ही। यह ट्रस्ट ही अब आवारा कुत्तों के भोजन, बंध्याकरण और उन्हें आरएफआईडी लगाने का काम कर रहा है। इस काम के लिए भी कोई निविदा नहीं जारी की गई थी, न ही किसी प्रक्रिया का पालन किया गया था। लेकिन ‘ब्लू क्रॉस’ जैसे बड़े संगठन के गृहनगर में कोई बाहरी संगठन क्यों लाया जाए, वह भी उस काम के लिए जिसे वर्षों से स्थानीय स्वैछिक कार्यकर्ता कर रहे थे?
सवाल है कि 2014 से सत्ता में होने के बावजूद मानव संसाधन विकास मंत्रालय या केंद्र सरकार ने ऐसा क्यों और कैसे होने दिया? ये सवाल याद दिलाते हैं कि आईआईटी केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय (पूर्व में मानव संसाधन विकास मंत्रालय) के नियंत्रण में है। पहले भी हमारी शैक्षिक प्रणाली में ईसाई और वाम विचारधारा के लोग रहे हैं। किंतु, अब वे आईआईटी पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं? कोरोना महामारी और केंद्र द्वारा विदेशों से धन आने के रास्ते बंद कर दिए जाने से ईसाई मिशनरियां बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। अगर इंवेंजेलिकल चर्च आॅफ इंडिया (ईसीआई) के बिशप एजरा सरगुनम की बात पर भरोसा करें तो इन मिशनरियों को अपनी रोजमर्रा जरूरतें पूरी करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। सरगुनम द्रमुक के कट्टर समर्थक और हिंदूफोबिया के शिकार हैं। उन्हें हिंदुओं के खिलाफ शोर मचाने के लिए भी जाना जाता है। एक वीडियो संदेश में गुलाबी रिबन पहने सरगुनम कहते हैं, ‘‘हमें अपने सदस्यों से कोई नकद धनराशि नहीं मिल रही है। इस दौरान बपतिस्मा, कम्यूनियन, थैंक्सगिविंग और इंटरसेशन या वेस्पर जैसे समारोह भी नहीं हुए। चर्चों का कोई विकास नहीं हो रहा है। मिशनरियों या स्वयं को सेवा के लिए समर्पित करने वालों की संख्या घट रही है। चार महीनों से कहीं कोई बपतिस्मा समारोह नहीं हुआ है। जल्द ही हमारे सदस्य चर्चोें और उसकी सेवाओं के लिए बचाए या रखे गए धन का खुले मन से दान करेंगे। यह होने पर ही हम पुरानी स्थिति में वापस आ सकेंगे।’